विचार

कचरे का प्रबंधन कर आमदनी देने की योजना…

स्वस्थ तन,मन और वातावरण के लिए साफ-सफाई जरूरी है।बिहार पहले इस मामले में काफी पिछड़ा था,इसका कारण अधिकतर आबादी का अशिक्षित होना कहा जा सकता है,परंतु पिछले दस सालों के दौरान शिक्षा की बयार ने हालात बदल दिए हैं।अब गांव-गिरांव के लोगों को सफाई का महत्व समझ में आने लगा है।शहरों में जरूर सुस्ती है।दरअसल ग्रामीण साफ-सफाई के तौर तरीकों को सीखना और समझना चाहते हैं।वे गांव,घर और आसपास ऐसा वातावरण बनाना चाहते हैं जिससे गंदगी जनित बीमारियां नियंत्रित रहें और उनकी आर्थिक स्थिति पर चोट न हो।नालंदा को बिहार का खास जिला माना जाता है।जिले के एक गांव भूई को सूबे का पहला कचरा प्रबंधन ग्राम बनने का गौरव हासिल हुआ है। इस तरह नालंदा ने दूसरों को आईना दिखाने का काम किया है।ज्ञान की इस धरती का नाम दुनिया के इतिहास में दर्ज है,इसलिए साफ-सफाई में यहां के गांव की उपलब्धि चीन, जापान, कोरिया व श्रीलंका समेत एशिया के तमाम देशों में भी गूंजेगी। बौद्ध धर्म एशिया के कई देशों में लोकप्रिय है,नालंदा को लोग भगवान बुद्ध की कर्मस्थली के रूप में जानते हैं। संयोग से इस पौराणिक नगरी का जुड़ाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी है,उनका यहां पैतृक निवास है।पिछले कुछ वर्षो में नालंदा ने कई मामलों में देश-दुनिया और प्रदेश को अपनी मेहनत के परिणाम से अवगत कराया है।पर्यटन नगरी की पहचान उन्नत खेती से भी की जाने लगी है।यहां के किसान आधुनिक तकनीकी से आलू और अनाज का प्रति हेक्टेयर रिकॉर्ड उत्पादन कर चीन जैसे प्रगतिशील देश को पीछे छोड़ चुके हैं।केंद्र सरकार ने देश के जिन सौ शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए चुना है,उसमें नालंदा भी है। केंद्र की वित्तीय मदद से इसकी सुंदरता में चार चांद लगने हैं।फिलवक्त नालंदा नई उपलब्धि कचरा प्रबंधन को लेकर सुर्खियों में आई है।यहां के राजगीर प्रखंड जिसे अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नगरी होने का दर्जा है,की भूई पंचायत कचरा प्रबंधन कर कमाई करनेवाली सूबे की पहली और देश की आठवीं पंचायत बन गई है।मंगलवार को जिला प्रशासन की ओर से इसकी विधिवत घोषणा के साथ एक खास बात यह प्रकाश में आई कि कचरा प्रबंधन कर भूई पंचायत को सबकी जुबान तक लाने में भी आधी आबादी का हाथ है।गौर करें तो इधर महिलाओं की भागीदारी से ही राज्य प्रगति के दुर्गम रास्ते तय कर रहा है।चाहे शिक्षा अभियान हो या पंचायती राज व्यवस्था अथवा शराबबंदी,सफल बनाने में महिलाओं का ही बड़ा योगदान रहा है।कचरामुक्त गांव तकरीबन चार दर्जन महिलाओं की ही मेहनत का परिणाम है।इन्हें गांव के हर घर के कचरे का प्रबंधन कर आमदनी देने की योजना से जोड़ा गया है।योजना के तहत जर्जर पुराने पंचायत भवन का जीर्णोद्धार करा सॉलिड-रिसोर्स मैनेजमेंट सेंटर बनाया गया है। सेंटर में दो सौ बतखें रखी गई हैं जो तालाब व अन्य कचरे वाली जगह में जाकर कीट-पतंगों,मच्छरों के लार्वा एवं शैवाल को चटकर सफाई करेंगी।जैविक व अजैविक कचरे को अलग करने की जगह के नीचे मछलियां पाली गईं हैं।कचरे से निकलने वाली खाद्य सामग्री व कीड़े-मकोड़े छनकर नीचे जाते हैं और उसको मछलियां अपना आहार बना लेती हैं। जीविका सदस्य प्रतिदिन सुबह आठ से दस बजे व शाम तीन से पांच बजे तक घरों से कचरा उठाती हैं।हर घर को प्रतिदिन एक रुपये व दुकान को एक से तीन रुपये तक कचरा प्रबंधन कमेटी को देना है।सेंटर में अलग करने के बाद जैविक कचरे को खाद बनाकर इसकी बिक्री की जाएगी।जबकि अजैविक कचरे को री-साइकिल करने के लिए बेचा जाएगा।उम्मीद यही की जानी चाहिए कि नालंदा का यह प्रयोग सफल हो ताकि दूसरे राज्य भी बिहार से कुछ सीखें।जो सच्च लीडर है,वह बताता नहीं,करके दिखाता है ।।

धर्मेन्द्र सिंह 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button