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आखिर क्यों उड़ाई जा रही है सुचना अधिकार अधिनियम की धजियाँ, कौन है इसका जिम्मेवार आरटीआई कार्यकर्ता या लोक सुचना पदाधिकारी या फिर सुचना आयोग…?

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के विभिन्न विभाग सूचना के आधार कानून का पालन करने में लापरवाही बरत रहा है।तय समय पर ये सूचना विवि में स्थित आरटीआई विभाग को उपलब्ध नहीं करा रहे है।जिससे विवि के अधिकारियों को आयोग के सामने हाथ जोड़ना पड़ रहा है इस समस्या को कड़ाई से पालने करने के लिए कुलसचिव मोहन मिश्र ने सभी विभागों को पत्र निर्गत करते हुए कहा है आदेश दिया है कि वो मांगी गई सूचना को तीन दिनों के अंदर मुहैया करा दे।जो विभाग इसका पालन नहीं करेगा वो आयोग द्धारा लगाए दंड को देगा।यहाँ बतादे कि अब तक मात्र एसएम कॉलेज ने दंड दिया है।जबकि आयोग के सामने कई बार विवि के अधिकारी क्षमा मांग चुके है।आटीआई प्रभारी अनिरूद्ध दास ने बताया कि सूचना नहीं मिलने से कई तरह की परेशानी हमारे सामने आती है।समय पर जबाव नहीं देने से हमें फटकार तक सुनना पड़ता है।विभाग सूचना देने में साल भर का समय भी ले लेते है।वहीं सूचना मांगने वाले भी एक ही पत्र में बीस से ज्यादा सवाल विभिन्न विभागों का मांग लेते है जिससे हमारे सामने ओर समस्या आ जाती है।पर यहाँ सवाल यह है की ससमय सुचना आवेदक को ससमय उपलब्ध कराया गया या नहीं…? बीस सवाल हो या पचास सवाल हो, लोक सुचना पदाधिकारी को तो एक बिषय का हि जबाब देना है क्या आवेदक को लोक सुचना पदाधिकारी एक बिषय से सम्बंधित या अलग अलग कर आवेदन दे सुचना प्राप्त करने का आदेश आवेदक को दिए…..? अगर दिए तो कितने दिनों के भीतर दिए।नहीं दिए तो इसका करण क्या है जो सुचना के लिए आवेदक को दर-दर की ठोकरे खानी परती है…यहाँ तक की सुचना अधिकार कार्यकर्ता पर झूठा मुकदमा भी करवा दिया जाता है ताकि आवेदक कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते रहे यह सब फंदा आरटीआई एक्ट का खुल्लम-खुल्ला उल्घंन है….इस पर राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार को विचार करने की जरुरत है और एक और गुजारिसह है की जितनेई आरटीआई कार्यकर्ताओ पर मुकदमा किया गया है इसे सरकार ख़त्म करवाए, यह कहना आरटीआई कार्यकर्ताओ का है, ताकि खुलकर RTI का लाभ ले सके ।

रिपोर्ट-धर्मेन्द्र सिंह 

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