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आखिर कहाँ खो गए भारत के 7 लाख 32 हज़ार गुरुकुल एवं विज्ञान की 20 से अधिक शाखाएं …

बात आती है की भारत में विज्ञान पर इतना शोध किस प्रकार होता था,तो इसके मूल में है भारतीयों की जिज्ञासा एवं तार्किक क्षमता,जो अतिप्राचीन उत्कृष्ट शिक्षा तंत्र एवं अध्यात्मिक मूल्यों की देन है।गुरुकुल के बारे में बहुत से लोगों को यह भ्रम है की वहाँ केवल संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी जो की गलत है।भारत में विज्ञान की 20 से अधिक शाखाएं रही है जो की बहुत पुष्पित पल्लवित रही है जिसमें प्रमुख 1.खगोल शास्त्र 2.नक्षत्र शास्त्र 3. बर्फ़ बनाने का विज्ञान 4.धातु शास्त्र 5.रसायन शास्त्र 6.स्थापत्य शास्त्र 7.वनस्पति विज्ञान 8. नौका शास्त्र 9.यंत्र विज्ञान आदि इसके अतिरिक्त शौर्य (युद्ध) शिक्षा आदि कलाएँ भी प्रचुरता में रही है।संस्कृत भाषा मुख्यतःमाध्यम के रूप में,उपनिषद एवं वेद छात्रों में उच्चचरित्र एवं संस्कार निर्माण हेतु पढ़ाए जाते थे।थोमस मुनरो सन 1813 के आसपास मद्रास प्रांत के राज्यपाल थे,उन्होंने अपने कार्य विवरण में लिखा है मद्रास प्रांत (अर्थात आज का पूर्ण आंद्रप्रदेश,पूर्ण तमिलनाडु,पूर्ण केरल एवं कर्णाटक का कुछ भाग )में 400 लोगो पर न्यूनतम एक गुरुकुल है।उत्तर भारत (अर्थात आज का पूर्ण पाकिस्तान,पूर्ण पंजाब,पूर्ण हरियाणा,पूर्ण जम्मू कश्मीर,पूर्ण हिमाचल प्रदेश,पूर्ण उत्तर प्रदेश,पूर्ण उत्तराखंड) के सर्वेक्षण के आधार पर जी.डब्लू.लिटनेर ने सन 1822 में लिखा है।उत्तर भारत में 200 लोगो पर न्यूनतम एक गुरुकुल है।माना जाता है की मैक्स मूलर ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर सबसे अधिक शोध किया है,वे लिखते है भारत के बंगाल 

प्रांत (अर्थात आज का पूर्ण बिहार,आधा उड़ीसा,पूर्ण पश्चिम बंगाल,आसाम एवं उसके ऊपर के सात प्रदेश) में 80 सहस्त्र (हज़ार) से अधिक गुरुकुल है जो की कई सहस्त्र वर्षों से निर्बाधित रूप से चल रहे है।उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के आकडों के कुल पर औसत निकलने से यह ज्ञात होता है की भारत में 18 वी शताब्दी तक 300 व्यक्तियों पर न्यूनतम एक गुरुकुल था।एक और चौकानें वाला तथ्य यह है की 18 शताब्दी में भारत की जनसंख्या लगभग 20 करोड़ थी, 300 व्यक्तियों पर न्यूनतम एक गुरुकुल के अनुसार भारत में 7 लाख 32 सहस्त्र गुरुकुल होने चाहिए।अब रोचक बात यह भी है की अंग्रेज प्रत्येक दस वर्ष में भारत में भारत का सर्वेक्षण करवाते थे उसे के अनुसार 1822 के लगभग भारत में कुल गांवों की संख्या भी लगभग 7 लाख 32 सहस्त्र थी,अर्थात प्रत्येक गाँव में एक गुरुकुल। 16 से 17 वर्ष भारत में प्रवास करनेवाले शिक्षाशास्त्री लुडलो ने भी 18 वी शताब्दी में यहीं लिखा की“भारत में एक भी गाँव ऐसा नहीं जिसमें गुरुकुल नहीं एवं एक भी बालक ऐसा नहीं जो गुरुकुल जाता नहीं।राजा की सहायता के अपितु,समाज से पोषित इन्ही गुरुकुलों के कारण 18 शताब्दी तक भारत में साक्षरता 17% थी,बालक के 5 वर्ष, 5 माह 5 दिवस के होते ही उसका गुरुकुल में प्रवेश हो जाता था।प्रतिदिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक विद्यार्जन का क्रम 14 वर्ष तक चलता था।जब बालक सभी वर्गों के बालको के साथ निशुल्कः 20से अधिक विषयों का अध्यन कर गुरुकुल से निकलता था।तब आत्मनिर्भर देश एवं समाज सेवा हेतु सक्षम हो जाता था।इसके उपरांत विशेषज्ञता (पांडित्य) प्राप्त करने हेतु भारत में विभिन्न विषयों वाले जैसे शल्य चिकित्सा,आयुर्वेद, धातु कर्म आदि के विश्वविद्यालय थे,नालंदा एवं तक्षशिला तो 2000 वर्ष पूर्व के है परंतु मात्र 150-170 वर्ष पूर्व भी भारत में 500-525 के लगभग विश्वविद्यालय थे।थोमस बेबिगटन मैकोले (टी.बी.मैकोले) जिन्हें पहले हमने विराम दिया था जब सन 1834 आये तो कई वर्षों भारत में यात्राएँ एवं सर्वेक्षण करने के उपरांत समझ गए की अंग्रेजो पहले के आक्रांताओ अर्थात यवनों,मुगलों आदि भारत के राजाओं,संपदाओं एवं धर्म का नाशकरने की जो भूल की है,उससे पुण्यभूमि भारत कदापि पददलित नहीं किया जा सकेगा,अपितु संस्कृति,शिक्षा एवं सभ्यता का नाश करे तो इन्हें पराधीन करने का हेतु सिद्ध हो सकता है।इसी कारण“इंडियन एज्यूकेशन एक्ट”बना कर समस्त गुरुकुल बंद करवाए गए। हमारे शासन एवं शिक्षा तंत्र को इसी लक्ष्य से निर्मित किया गया ताकि नकारात्मक विचार,हीनता की भावना,जो विदेशी है वह अच्छा,बिना तर्क किये रटने के बीज आदि बचपन से ही बाल मन में घर कर ले और अंग्रेजो को प्रतिव्यक्ति संस्कृति,शिक्षा एवं सभ्यता का नाश का परिश्रम न करना पड़े।उस पर से अंग्रेजी कदाचित शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी नहीं होती तो इस कुचक्र के पहले अंकुर माता पिता ही पल्लवित होने से रोक लेते परंतु ऐसा हो न सका। हमारे निर्यात कारखाने एवं उत्पाद की कमर तोड़ने हेतु भारत में स्वदेशी वस्तुओं पर अधिकतम कर देना पड़ता था एवं अंग्रेजी वस्तुओं को कर मुक्त कर दिया गया था।कृषकों पर तो 90% कर लगाकर फसल भी लूट लेते थे एवं लैंड एक्विजिशन एक्ट” के माध्यम से सहस्त्रो एकड़ भूमि भी उनसे छीन ली जाती थी,अंग्रेजो ने कृषकों के कार्यों में सहायक गौ माता एवं भैसों आदि को काटने हेतु पहली बार कलकत्ता में कसाईघर चालू कर दिया,लाज की बात है वह अभी भी चल रहा है।सत्ता हस्तांतरण के दिवस (15.08.1947) के उपरांत तो इस कुचक्र की गोरे अंग्रेजो पर निर्भरता भी समाप्त हो गई,अब तो इसे निर्बाधित रूप से चलने देने के लिए बिना रीढ़ के काले अंग्रेज भी पर्याप्त थे,जिनमें साहस ही नहीं है भारत को उसके पूर्व स्थान पर पहुँचाने का ।दुर्भाग्य है की भारत में हम अपने श्रेष्ठतम सृजनात्मक पुरुषों को भूल चुके है।इसका कारण विदेशियत का प्रभाव और अपने बारे में हीनता बोध की मानसिक ग्रंथि से देश के बुद्धिमान लोग ग्रस्त है।आप सोच रहे होंगे उस समय अमेरिका यूरोप की क्या स्थिति थी,तो सामान्य बच्चों के लिए सार्वजानिक विद्यालयों की शुरुआत सबसे पहले इंग्लैण्ड में सन 1868 में हुई थी,उसके बाद बाकी यूरोप अमेरिका में अर्थात जब भारत में प्रत्येक गाँव में एक गुरुकुल था,97% साक्षरता थी तब इंग्लैंड के बच्चों को पढ़ने का अवसर मिला।तो क्या पहले वहाँ विद्यालय नहीं होते थे ? होते थे परंतु महलों के भीतर,वहाँ ऐसी मान्यता थी की शिक्षा केवल राजकीय व्यक्तियों को ही देनी चाहिए बाकी सब को तो सेवा करनी है।गुरुकुल में अपनी शिक्षा पूरी करके एक शिष्य अपने गुरु से विदा लेने आया।गुरु ने कहा-वत्स,यहां

रहकर तुमने शास्त्रों का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लिया।किंतु कुछ उपयोगी शिक्षा शेष रह गई है।इसके लिए तुम मेरे साथ चलो।शिष्य गुरु के साथ चल पड़ा।गुरु उसे गुरुकुल से दूर एक खेत के पास ले गए।वहां एक किसान खेतों को पानी दे रहा था।गुरु और शिष्य उसे गौर से देखते रहे।पर किसान ने एक बार भी उनकी ओर आंख उठाकर नहीं देखा।जैसे उसे इस बात का अहसास ही न हुआ हो कि पास में कोई खड़ा भी है।वहां से आगे बढ़ते हुए उन्होंने देखा कि एक लुहार भट्ठी में कोयला डाले उसमें लोहे को गर्म कर रहा था।लोहा लाल होता जा रहा था। लुहार अपने काम में इस कदर मगन था कि उसने गुरु-शिष्य की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया।गुरु ने शिष्य को चलने का इशारा किया।फिर दोनों आगे बढ़े। आगे थोड़ी दूर पर एक व्यक्ति जूता बना रहा था।चमड़े को काटने,छीलने और सिलने में उसके हाथ काफी सफाई के साथ चल रहे थे।गुरु ने शिष्य को वापस चलने को कहा।शिष्य समझ नहीं सका कि आखिर गुरु का इरादा क्या है? रास्ते में चलते हुए गुरु ने शिष्य से कहा- वत्स, मेरे पास रहकर तुमने शास्त्रों का अध्ययन किया लेकिन व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा बाकी थी।तुमने इन तीनों को देखा।ये अपने काम में संलग्न थे।अपने काम में ऐसी ही तल्लीनता आवश्यक है, तभी व्यक्ति को सफलता मिलेगी।अमेरिका के हॉवर्ड विश्वविधालय से लेकर भारत के

आई आई टी में क्या कोई ऐसी शिक्षा दी जाती है कि छात्र की आंख पर पट्टी बांध दी जाये और उसे प्रकाश की किरने भी दिखाई ना दे,फिर भी वो सामने रखी हर वस्तु को पढ़ सकता हो ? है ना चौकाने वाली बात ? पर इसी भारत में किसी हिमालय की कंदरा में नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात के महानगर में यह चमत्कार आज साक्षात् हो रहा है।शिक्षा पा रहे है।पर उनकी मेधा शक्ति किसी ही महंगे पब्लिक स्कूल के बच्चो की मेधा शक्ति को बहुत पीछे छोड़ चुकी है।आपको याद होगा पिछले दिनों सभी टी वी चैनलों ने एक छूता प्यारा–सा बच्चा दिखाया था,जिसे ‘गूगल चाइल्ड’ खा गया।यह बच्चा सेकेंड में उत्तर देता था जबकि उसकी आयु 10 वर्ष से भी कम थी।दुनिया हैरान थी ऐसे ज्ञान को देखकर।पर किसी टी वी चैनल ने ये नहीं बताया कि ऐसी योग्यता उसमे इसी गुरुकुल से आई है । दूसरा नमूना उस बच्चे का है जिसे दुनिए के इतिहास की कोई भी तारीख पूछो,तो वह सवाल खत्म होने से पहले उस तारीख को 

क्या दिन था,ये बता देता है।इतनी जल्दी तो कोई आधुनिक कंप्यूटर भी जवाब नहीं दे पाता।तीसरा बच्चा गणित के 50 मुश्किल सवाल मात्र अढाई मिनट में हल कर देता है।यह विश्व रिकॉर्ड है।यह सब बच्चे संस्कृत में वार्ता करते है, शास्त्रों का अध्यन करते है, देशी गाय का दूध-घी खाते है।बाजारू सामान से बचकर रहते है।यथासंभव प्राकृतिक जीवन जीते है और गुडसवारी, ज्योतिष, शास्त्रीय संगीत, चित्रकला आदि विषयों का इन्हें अध्यन कराया जाता है। इस गुरुकुल में मात्र 100 बच्चे है पर उनको पढ़ाने के लिये 300 शिक्षक है।ये सब वैदिक पद्धति से पढ़ाते है। बच्चो की अभिरूचि अनुसार उनका पाठयक्रम तैयार किया जाता है। 

परीक्षा की कई निर्धारित पद्दति नहीं है।पढ़कर निकलने के बाद डिग्री भी नहीं मिलती यहाँ पढनेवाले ज्यादातर बच्चे 15-16 साल से काम आयु के है और लगभग सभी बच्चे अत्यंत संपन्न परिवारों से है इसलिये इन्हें नौकरी की भी चिंता नहीं है।वैसे भी डिग्री वालो नौकरी कहा मील रही है ? इस गुरुकुल के संस्थापक उत्तम भाई ने फैसला किया कि उन्हें योग्य संस्कारवान मेधावी वह देशभक्त युवा तैयार करने हैं जो जिस भी क्षेत्र में जाएं अपनी योगिता का लोहा मनवा दे और आज यह हो रहा है दर्शक इन बच्चों की बहुआयामी प्रतिभाओं को देखकर दांतो तले उंगली दबा लेते हैं,खुद डिग्री वहीन उत्तम भाई का कहना है कि उन्होंने सारा ज्ञान स्वाध्याय और अनुभव से अर्जित किया है उन्हें लगता है कि भारत की मौजूदा शिक्षा प्रणाली जो कि मेकाले की देन है, भारत को गुलाम बनाने के लिए लागू की गई थी इसलिए भारत गुलाम बना और आज तक बना हुआ है ये गुलामी की जंजीरें तब टूटेगी जब भारत का हर युवा प्राचीन गुरूकुल परंपरा से पढ़कर अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं पर गर्व करेगा तब भारत फिर से विश्व गुरु बनेगा आज की तरह कंगाल नहीं।उत्तम भाई चुनौती देते हैं कि भारत के सबसे साधारण बच्चों को छांट लिया जाए और 10-10 की टोली बनाकर दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ विद्यालय में भेज दिया जाए 10 छात्र उन्हें भी दे दिए जाएं।साल के आखिर में मुकाबला हो।अगर उत्तम भाई के गुरुकुल के बच्चे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों के विद्यार्थियों के मुकाबले कहीं गुना ज्यादा मेधावी ना हो तो उनकी गर्दन काट दी जाए।भारत सरकार को चाहिए कि वह गुलाम बनाने वाले देश के इस शब्द स्कूलों को बंद कर दे और वैदिक पद्धति से चलने वाले गुरुकुलो की स्थापना करें ।

रिपोर्ट-वरिष्ठ पत्रकार 

 

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