अगर आने वाले दिनों में नीतीश कुमार देश के उपप्रधानमंत्री के कुर्सी पर नजर आए तो चौंकिएगा नहीं…
अगर आनेवाले दिनों में नीतीश कुमार देश के उपप्रधानमंत्री के कुर्सी पर नजर आए तो चौंकिएगा नहीं।पहली ही लाइन में हम आपको क्लीयर कर देते हैं की मामला क्या है।दरअसल सियासी हल्कों में ये बात तेज़ी से फैल रही है की भाजपा ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उपप्रधानमंत्री बनने का ऑफर दिया है।आप सोच रहे होंगे नीतीश तो वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री हैं।तो ऐसा कैसे हो सकता हैं।आइए इसके पीछे के कारणों पर एक नज़र डाल लें तो नीतीश को उपप्रधानमंत्री बनाने की ठोस वजहें भी गिनाई जा सकती है।नीतीश को अपने पाले में लाकर बीजेपी ने बिहार में फिर से सत्ता में वापसी कर ली है
अटल बिहारी वाजपेयी समय से ही नीतीश एनडीए खेमे के खास सिपहसलार रहे हैं।विपक्षी खेमे की ओर से नीतीश का नाम गाहे बगाहे प्रधानमंत्री के लिए चलता रहा है,अगर भाजपा नीतीश को उपप्रधानमंत्री बना दे देती है तो विपक्षी एकजुटता की हवा निकलना तय है,क्योंकी जेडीयू भाजपा गठबंधन के पहले नीतीश का नाम 2019 के लिए पीएम के सबसे योग्य औऱ डिज़रविंग कैंडीडेट के तौर पर देखा जा रहा था।इसलिए विपक्षी पार्टियां भी नीतीश की तरफ एक उम्मीद भरी नज़रों से देख रही थी।लेकिन इस बारे में बात करना अब बेमानी होगी क्योंकी सारा का सारा राजनीतिक परिदृश्य पिछले एक से डेढ़ माह में बदल चुका है।गौर करे की लालू यादव की राजनीति को देखा जाए तो शुरु से ही उनकी राजनीतिक बिसात जातीय गोलबंदी के आसरे पे ही टीकी है, नीतीश को उपप्रधानमंत्री बनाकर उनके इस राजनीतिक हथियार को भोथरा किया जा सकता है।क्यों की नीतीश खुद पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं।बिहारी अस्मिता की बात करने वाले लालू की राजनीतिक धार नीतीश के उपप्रधानमंत्री बनते ही कुंद पड़ जाएगी, क्योंकी लालू अक्सर बिहार को ठगने, बिहार से भेदभाव जैसे सियासी हथकंडे चलाते रहते हैं।जब किसी बिहारी को ही उपप्रधानमंत्री बना दिया जाए तो भेदभाव,बिहारी अस्मिता जैसे सारे मुद्दे गौण हो जाते हैं।सीटों के गणित की बात करें तो नीतीश के उपप्रधानमंत्री बनते ही बिहार की सियासी फिज़ा एकदम बदल सकती है,क्यों की बिहार की जनता अपने राज्य से उपप्रधानमंत्री का चेहरा देखकर सारे विपक्ष की हवा निकाल देगी।क्यों की बिहार विधानसभा चुनाव के समय बने महागठबंधन से बीजेपी को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।औऱ नीतीश को अपने पाले में लाकर विपक्ष वैसे ही आधी लड़ाई जीता मान रहा है।बीजेपी इस बार नीतीश को खोने का रिस्क नहीं लेना चाहती क्योंकी उसे पता है की नीतीश से एक बार गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी को बिहार की सत्ता से 4 साल दूर रहना पड़ा था, और नीतीश का साथ पाकर बीजेपी खुद को बिहार में मज़बूत तौर पर आंकती है।वैसे भी कोर्ट ने लालू को 11 साल के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है,लालू पर चारा घोटाले की तलवार लटक रही है,इसलिए बिहार में बीजेपी का कोई सियासी विकल्प है तो वे नीतीश कुमार ही है।उनको भी अपने पाले में लाकर बीजेपी ने एक तीर से कई शिकार किए हैं।पहला तो नीतीश को अपने पाले में लाने से महागठबंधन टूट गया दूसरा बिहार में नीतीश जैसा मज़बूत साथी बिहार में वापस मिल गया।तीसरा महागठबंधन के रुप में वजूद ले रहा भविष्य का खतरा टल गया,जिसकी बानगी बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव में देखी थी।एक वरिष्ठ पत्रकार की इस बारे में राय जाने तो वे पूरी तरह इस बात से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं की नीतीश कुमार भी इसे अपने लिए एक नए अवसर की तौर पर देख रहे है।उन्हें लगता है की सारी आलोचलाओं के बावजूद नरेन्द्र मोदी को 2024 या इसके भी आगे हरा पाना विपक्ष के बूते में नहीं है।उन्होंने सार्वज़निक तौर पर ये कहकर की नरेंद्र मोदी आने-वाले समय में भी अजय हैं अपनी मंशा स्पष्ट कर दी।नीतीश को लगता है की पीएम ना सही डेप्युटी पीएम बनने का उनका ख्वाब पूरा होने जा रहा है।इससे उन्हें और उनकी पार्टी जदयू को राष्ट्रीय फलक पर आने का मौका मिलेगा।आगे कहते हैं की भाजपा के साथ रहते हुए नीतीश बिहार की सत्ता पर भी लंबे समय तक काबिज रहेंगे।उनका नियंत्रण बिहार की सत्ता पर बना रहेगा।उन्हें मालूम है कि लालू और उनके परिवार पर बड़ी मुसीबत आनेवाली है।झारखंड हाईकोर्ट में चल रहे चारा घोटाले से लेकर रेलवे और बेनामी संपत्ति के मामलों में लालू और उनका पूरा परिवार सीबीआई के शिकंजे में है।कानूनी जानकारों के अनुसार जेल जाने की आशंका ज्यादा है।ऐसे में नीतीश के लिए बिहार पर शासन करना और केंद्र में अपनी दखल बढ़ाना दोनो ही आसान हैं।
रिपोर्ट-धर्मेन्द्र सिंह