अवैध बालू खनन रिपोर्ट पर हुआ अमल तो खुलेंगे कई के राज…….
मंगलवार की रात एवं बुधवार को विशेष छापेमारी अभियान जोन के 11 जिलों में चलाया गया।शराब,अवैध बालू खनन एवं अन्य अपराध से जुड़े 909 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया।इसमें गंभीर अपराध से जुड़े 524 लोगों को सीधे जेल भेज दिया गया।अन्य लोगों को थाने से जमानत दी गयी है।आंकड़े पर गौर करें तो इस बार भी पटना पुलिस नंबर एक पर रही।पटना पुलिस ने 195 को गिरफ्तार किया था जिसमें 131 को जेल भेजा गया।वहीं अपराधियों को जेल भेजने में दूसरे नंबर पर गया जिला रहा।गया पुलिस ने 81 लोगों को गिरफ्तार किया एवं सत प्रतिशत कार्रवाई करते हुये सभी 81 को जेल भेज
दिया।इस बार के अभियान में सबसे खराब प्रदर्शन अरवल पुलिस का देखने के लिए मिल रही है।खेत से पकड़ी 40 हजार पाउच:पटना जिला उत्पाद की टीम ने खुशरुपुर थाना अंतर्गत मोसिनपुर डेरा के एक खेत में 40 हजार मसालेदार पाउच पकड़ा है।पाउच पर झारखंड का लेबल लगा है।अधिकारियों ने कहा कि खेत जिनका है वहां नहीं रहते हैं।इसलिए अभी तक शराब किसका उसकी जानकारी नहीं मिल पायी है।जिस बालू माफिया सुभाष प्रसाद यादव ने एक ही दिन में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के तीन फ्लैट खरीदे हैं,उसे अवैध बालू खनन के कार्यों में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी सहयोग करते रहे हैं।सिर्फ पुलिस ही नहीं,माइंस और ट्रांसपोर्ट के अफसर भी उसके काले कारनामें की राह आसान बना रहे थे।यह तथ्य उस सरकारी रिपोर्ट में दर्ज है जिसे करीब छह माह पूर्व पटना के तत्कालीन डीआइजी शालीन ने पटना उच्च न्यायालय के निर्देश पर तैयार की थी।तत्कालीन डीआइजी ने यह रिपोर्ट इसी साल अप्रैल महीने में कोर्ट को सौंप दी है।सूत्र बताते हैं कि डीआइजी की रिपोर्ट पर अभी भी अमल हुआ तो बालू माफिया को संरक्षण देनेवाले राजनेता और अफसर गठजोड़ उजागर हो सकता है।पटना उच्च न्यायालय में चल रहे मामला सीडब्लयूजेसी 17809/2015 की सुनवाई के दौरान 17 फरवरी को तत्कालीन डीआइजी को बालू घाटों से खनन और इसमें लगे माफिया तत्वों की पहचान पर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था।कोर्ट के आदेश पर जांच हुई थी शुरू,पटना हाइकोर्ट में जमा है विस्तृत रिपोर्ट……..
डीआइजी ने स्थानीय पुलिस और माइंस के अधिकारियों के साथ बिहटा, मनेर, कुरजी और दीघा तथा भोजपुर के कई बालू घाटों का स्थल निरीक्षण किया।हालांकि, चार दिन बाद कोर्ट ने अपने आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी।पुन:अप्रैल महीने में कोर्ट ने रिपोर्ट सौंपने को कहा,सूत्रों के मुताबिक फिलहाल यह रिपोर्ट पटना हाइ कोर्ट में जमा है।रिपोर्ट में बालू खनन को लेकर किस प्रकार सरकार के नियमों की धज्जियां उड़ायी गयी है उसकी चर्चा विस्तार से की गयी है।रिपोर्ट में बालू माफिया के राजद के शीर्ष नेताओं से राजनीतिक कनेक्शन के भी सीधे संकेत दिये गये हैं।सूत्र बताते हैं कि अपने चार दिनों की तहकीकात पर तैयार की गयी इस रिपोर्ट में कहा गया कि बालू माफिया सुभाष प्रसाद यादव के रिश्तों को लेकर पुलिस और माइंस के कनीय अधिकारी बंद कमरे में उसके आला अधिकारी और बड़े नेताओं से कनेक्शन की बात स्वीकारते हैं।रिपोर्ट में बालू माफिया के संबंधों और अवैध कारोबार की जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराने की सलाह भी दी गयी है।रिपोर्ट में सुभाष प्रसाद यादव के सहयोगी के तौर पर राजद नेता पप्पू राय,विधायक अरुण
यादव और विधान पार्षद राधाचरण सेठ के नाम की भी चर्चा है।सूत्रों के मुताबिक रिपोर्ट में पटना मे तैनात कुछ आला पुलिस अधिकारियों के भी नाम लिये गये हैं जिनकी मिलीभगत से बालू माफिया का काला कारोबार चल रहा है।रिपोर्ट में पटना के बिहटा और मनेर में बालू उठाव का ठेका जिस ब्राडसन कंपनी को मिला है उसके डायरेक्टर सुभाष प्रसाद यादव के बड़े रसूखदारों से सीधे ताल्लुकात की बात कही गयी है।तीन मीटर से अधिक नहीं करना था खनन कर दिया 10 मीटर आम लोग,ग्रामीण तथा पुलिस प्रशासन और मीडिया से मिली जानकारी के आधार पर तैयार रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार ने पटना जिले में मात्र 12 एकड़ जमीन में ही बालू खनन का पट्टा दिया है।लेकिन,इसके एवज में डेढ़ सौ हेक्टेयर से अधिक इलाके में बालू का अवैध रूप से खनन किया जा रहा है।बिहार माइंस एंड मिनलरल्स कनशेसन अमेंडमेंट रूल्स 2014 के मुताबिक बालू खनन का कार्य अधिकतम तीन मीटर की गहरायी तक ही किया जा सकता है।लेकिन,प्रशासन और स्थानीय दबंग लोगों के सहयोग से बालू माफिया ने दस मीटर गहरे गढ़े बना डाले हैं।बालू खनन वाले क्षेत्र में मजदूरों के लिए न तो सैनिटेशन की व्यवस्था है और न ही पीने का पानी उपलब्ध है।
जबकि,सरकारी प्रावधान के लिए यह अनिवार्य है।बालू चालान और ट्रक-ट्रैक्टरों पर ढुलाई होने के दौरान इसकी जांच के लिए कोई अधिकारी उपलब्ध नहीं होते।पर्यावरण के लिए भी बन रहे खतरा…रिपोर्ट के मुताबिक बालू से सोना बनाने में मशगूल माफिया ने जहां सरकारी राजस्व को बड़े पैमाने पर चूना लगाया।वहीं,पर्यावरण को लेकर भी भारी खतरा उत्पन्न कर दिया है।स्थानीय लोगों से मिली जानकारी का हवाला देते हुए रिपोर्ट में इस बात की चर्चा है कि प्रतिदिन हजारों ट्रैक्टर और ट्रकों में भर कर बालू का अवैध खनन किया जा रहा है।इस कारण वहां हमेशा धूलकण हवा में उड़ते रहते हैं जो सांस के साथ फेफड़े में चले जाते हैं।इस कारण श्वास संबंधी कई तरह के रोगों की समस्या हो सकती है।गौर करे की बिहार के 29 जिलों में बालू मिलता है।सभी घाटों की बंदोबस्ती से 2017 के पंचांग वर्ष में सरकार को पांच अरब तीस करोड़ सात लाख चौंसठ हजार सात सौ तिरपन रुपये का राजस्व मिला।इसमें से पटना,भोजपुर और सारण जिले के घाटों की बंदोबस्ती केवल एक कंपनी को दी गयी है।उससे सरकार को एक अरब छियासठ करोड़ चार लाख तिरसठ हजार नौ सौ निन्यानबे रुपये का राजस्व मिला।वहीं रोहतास-औरंगाबाद जिले और जमुई व लखीसराय जिले के
बालू घाटों की बंदोबस्ती भी एक-एक कंपनी को दी गयी है।इसके अलावा 22 जिलों के घाटों की बंदोबस्ती अलग-अलग कंपनियों को दी गयी है।इन 29 जिलों में से सबसे ज्यादा राजस्व भोजपुर जिले की बालू घाटों की बंदोबस्ती से मिला।वहां से सरकार को एक अरब दो करोड़ निन्यानबे लाख पचासी हजार आठ सौ उन्नीस रुपये मिले।वहीं पटना से उनसठ करोड़ छब्बीस लाख उन्नीस हजार छह सौ एक और सारण से तीन करोड़ अठहत्तर लाख अठावन हजार पांच सौ उन्यासी रुपये मिले।इन तीनों जिलों को मिलाकर केवल एक ही कंपनी मे ब्रॉडसन कमोडिटीज प्रा.लि. को बंदोबस्ती दी गयी।वहीं इनसे कम राजस्व देनेवाले जिलों की बंदोबस्ती अलग-अलग की गयी और अलग-अलग कंपनियों को दी गयी।पंचांग वर्ष 2015 से 2019 तक पांच साल के लिए इनकी बंदोबस्ती लोक नीलामी के माध्यम से की गयी।विभाग का कहना है कि पंचांग वर्ष 2019 तक के लिए प्रत्येक साल की बंदोबस्ती राशि का निर्धारण पिछले साल की बंदोबस्ती राशि में 20 फीसदी जोड़कर निर्धारित करने का प्रावधान किया गया है।इस तरह हर साल इस राशि में बढ़ोतरी
होती जाती है।कंपनियां इसका पूर्ण भुगतान करती हैं।इसके बाद राज्य सरकार से खनन योजना अनुमोदित करवाकर पर्यावरणीय स्वीकृति समर्पित करना अनिवार्य है।ऐसा क्यों हुआ ? इस बारे में खान एवं भूतत्व विभाग का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार नयी बालू नीति की अधिसूचना 27 अगस्त,2013 को जारी कर दी गयी थी।इसके साथ ही बिहार लघु खनिज समनुदान नियमावली 1972 में आवश्यक संशोधन साल 2014 में कर दिया गया था।इसके तहत बालूघाटों की बंदोबस्ती पंचांग वर्ष के आधार पर जिलावार एक इकाई के रूप में लोक नीलामी के माध्यम से की जाती है।नयी नीति के अनुसार पटना,भोजपुर और सारण जिलों को एक इकाई, रोहतास व औरंगाबाद जिलों को एक इकाई और जमुई व लखीसराय जिलों को एक इकाई के रूप में बंदोबस्ती का प्रावधान किया गया।इस तरह प्रदेश के बालू वाले कुल 29 जिलों को 25 बालू घाट इकाइयों में संगठित किया गया।खनन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बालू घाटों की इकाइयों का गठन गलत हुआ है।29 जिलों में जब सबसे अधिक राजस्व केवल भोजपुर जिले से मिलता है तो उसे अन्य दो जिलों के साथ जोड़कर एक इकाई बनाने की क्या जरूरत थी ? केवल भोजपुर जिले के बालू घाटों की बंदोबस्ती एक कंपनी को दी जाती तो ठीक रहता।इसी तरह रोहतास जिले से चौरानबे करोड़ छत्तीस लाख आठ सौ छियानबे रुपये का राजस्व सरकार को मिला जोकि भोजपुर के बाद दूसरे नंबर पर है।इसके बावजूद रोहतास को औरंगाबाद जिले के साथ जोड़ दिया गया।इस इकाई की बंदोबस्ती भी केवल एक कंपनी को मिली।क्या इसके पीछे किसी खास कंपनी को फायदा पहुंचाने की मंशा नहीं है ?
रिपोर्ट-न्यूज़ रिपोटर